चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों वाली बेंच ने अक्टूबर 2023 के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया। इस फैसले में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से मना किया गया था।
अक्टूबर 2023 में, मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई में बेंच ने 3:2 के बहुमत से फैसला दिया कि समलैंगिक विवाह संवैधानिक रूप से वैध नहीं है।
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समलैंगिक विवाह क्या है?
परिचय: समलैंगिक विवाह का मतलब है कि एक ही जेंडर के दो लोग, जैसे दो पुरुष या दो महिलाएँ, आपस में शादी करें।
भारत में वैधता: भारत में समान लिंग के लोगों के बीच विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय 2023:
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट (SMA), 1954 समान लिंग वाले जोड़ों पर लागू नहीं होता।
- कोर्ट ने यह भी कहा कि इस पर कानून बनाना संसद और राज्य विधानसभाओं का काम है।
- संविधान के तहत शादी करना कोई “मूल अधिकार” नहीं है।
- हालांकि, कोर्ट ने समान लिंग के जोड़ों को अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के तहत लिव-इन पार्टनर के समान अधिकारों को बरकरार रखा।
स्पेशल मैरिज एक्ट (SMA), 1954 क्या है?
परिचय: यह कानून अलग-अलग धर्मों और जातियों के लोगों को शादी के लिए कानूनी ढाँचा देता है। यह सिविल मैरिज को मान्यता देता है, जहाँ शादी को धर्म की बजाय सरकार मान्यता देती है।
कहाँ लागू होता है?
- यह हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध समेत सभी धर्मों पर लागू होता है।
- विदेशी नागरिक भी इस कानून के तहत भारत में अपनी शादी रजिस्टर कर सकते हैं, अगर एक पक्ष ने कम से कम 30 दिन भारत में निवास किया हो।
मुख्य प्रावधान:
- शादी की मान्यता: यह कानून शादी के पंजीकरण, कानूनी मान्यता और सामाजिक लाभ जैसे उत्तराधिकार और विरासत के अधिकार देता है।
- नोटिस की आवश्यकता:
- शादी करने वाले जोड़े को ज़िलाधिकारी को लिखित नोटिस देना होता है।
- नोटिस के 30 दिनों में इस पर आपत्तियाँ दर्ज की जा सकती हैं।
- आयु सीमा: पुरुष के लिए न्यूनतम उम्र 21 साल और महिला के लिए 18 साल।
समलैंगिक विवाह के पक्ष में तर्क
- समानता और अधिकार:
- समलैंगिक जोड़ों को शादी का अधिकार न देना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- यह अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के तहत आता है।
- साथ रहने का अधिकार:
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसलों में यह स्पष्ट किया है कि साथ रहना एक मौलिक अधिकार है।
- कानूनी और आर्थिक लाभ:
- समलैंगिक विवाह को मान्यता मिलने से उत्तराधिकार, संपत्ति और सामाजिक लाभ मिलेंगे।
- अंतरराष्ट्रीय उदाहरण:
- 30 से ज्यादा देशों में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी गई है।
समलैंगिक विवाह के खिलाफ तर्क
- धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ:
- कई धर्म और संस्कृतियाँ मानती हैं कि शादी सिर्फ पुरुष और महिला के बीच होनी चाहिए।
- प्राकृतिक व्यवस्था:
- शादी का उद्देश्य संतान पैदा करना है, जो समलैंगिक जोड़े नहीं कर सकते।
- कानूनी जटिलताएँ:
- संपत्ति और उत्तराधिकार जैसे मामलों में बदलाव की जरूरत होगी।
- गोद लेने के मुद्दे:
- समलैंगिक जोड़ों द्वारा गोद लिए गए बच्चों को भेदभाव और सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ सकता है।
आगे की राह
- कानूनी सुधार:
- स्पेशल मैरिज एक्ट (SMA) में बदलाव कर समलैंगिक जोड़ों को समान अधिकार दिए जा सकते हैं।
- अनुबंध आधारित विकल्प भी एक समाधान हो सकता है।
- संवाद और सहयोग:
- धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों के साथ बातचीत कर समझौते की राह निकाली जा सकती है।
- न्यायिक नेतृत्व:
- LGBTQIA+ समुदाय कानून को चुनौती देकर बदलाव की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
- सामूहिक प्रयास:
- सरकार, समाज और धार्मिक नेताओं के सहयोग से एक समावेशी समाज बनाया जा सकता है।
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