संविधान नियमों, उपनियमों का एक ऐसा लिखित दस्तावेज होता है, जिसके अनुसार सरकार का संचालन किया जाता है। यह देश की राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढाँचा निर्धारित करता है। संविधान राज्य की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की स्थापना, उनकी शक्तियों तथा दायित्वों का सीमांकन एवं जनता तथा राज्य के मध्य संबंधों का विनियमन करता है। प्रत्येक संविधान, उस देश के आदर्शों, उद्देश्यों व मूल्यों का दर्पण होता है। संवैधानिक विधि देश की सर्वोच्च विधि होती है, तथा सभी अन्य विधियाँ इसी पर आधारित होती हैं। संविधान एक जड़ दस्तावेज नहीं होता, बल्कि यह निरंतर पनपता रहता है। वर्षों से चली आ रही परम्परायें भी देश के शासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।
संविधान का महत्त्व (Importance of Constitution)
• संविधान यह सुनिश्चित करता है कि कानून कौन बनाएगा?
• समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट करता है।
• समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी तथा सरकार का निर्माण कैसे होगा, निर्धारित करता है।
• यह समाज की आकांक्षाओं एवं लक्ष्यों को अभिव्यक्त करता है एवं न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हेतु उचित परिस्थितियों के निर्माण को सुनिश्चित करता है। (न्यूनतम समन्वय व आपसी विश्वास हेतु)
• यह समाज को बुनियादी पहचान प्रदान करता है।
• संविधान, राजव्यवस्था के तीन प्रमुख अंगों कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका की स्थापना करता है तथा उनकी शक्तियों एवं अधिकारों को परिभाषित करता है।
• यह राज्य के अंगों के अधिकार को मर्यादित कर उन्हें निरंकुश एवं तानाशाह होने से रोकता है।
• संविधान एक आइना है जिसमें उस देश के भूत, वर्तमान और भविष्य की झलक मिलती है।
संविधान और राजव्यवस्था के अनेक उपादान ब्रिटिश शासन से ग्रहण किये गए हैं, ब्रिटिशों द्वारा समय-समय पर लाए गए अधिनियमों ने भारतीय सरकार और प्रशासन की विधिक रूपरेखा/ढाँचे को तैयार किया है।
सवैधानिक विकास के चरण (Stages of Constitutional Development) रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773 (Regulating Act, 1773)
इस अधिनियम के द्वारा भारत में कंपनी के शासन हेतु पहली बार एक लिखित संविधान प्रस्तुत किया गया। भारतीय संवैधानिक इतिहास में इसका विशेष महत्त्व यह है कि इसके द्वारा भारत में कंपनी के प्रशासन पर ब्रिटिश संसदीय नियंत्रण की शुरुआत हुई। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं-
• बंबई तथा मद्रास प्रेसिडेंसी को कलकत्ता प्रेसिडेंसी के अधीन कर दिया गया।
• कलकत्ता प्रेसिडेंसी में गवर्नर जनरल व चार सदस्यों वाले परिषद् के नियंत्रण में सरकार की स्थापना की गई।
भारतीय संविधान का निर्माण एवं इसकी प्रमुख विशेषताएँ
The Making of the Indian Constitution and Its Salient Features
पृष्ठभूमि (Background)
- भारत में संविधान सभा के गठन का विचार सर्वप्रथम 1934 में वामपंथी नेता एम. एन. रॉय द्वारा रखा गया।
- वर्ष 1934 में ही स्वराज पार्टी द्वारा संविधान सभा के गठन का प्रस्ताव रखा गया।
- 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा संविधान सभा के निर्माण की आधिकारिक मांग के बाद 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत के संविधान निर्माण हेतु वयस्क मताधिकार की बात कही।
- नेहरू की इस मांग को ब्रिटिश सरकार ने सैद्धांतिक रूप से मान लिया, और यही प्रस्ताव 1940 के ‘अगस्त प्रस्ताव’ के नाम से जाना जाता है।
- ब्रिटिश सरकार ने 1942 में ‘क्रिप्स मिशन’ (सर स्टैफर्ड क्रिप्स के नेतृत्त्व में) संविधान निर्माण हेतु भारत भेजा, जिसे मुस्लिम लीग ने अस्वीकार कर दिया (लीग द्वारा दो स्वायत्त राज्यों की मांग के कारण)।
संविधान सभा का गठन (Making of the Constituent Assembly)
- क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद 1946 में तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन (लॉर्ड पेथिक लॉरेंस, सर स्टैफर्ड क्रिप्स, और ए. वी. अलेक्जेंडर) को भारत भेजा गया।
- कैबिनेट मिशन के एक प्रस्ताव के द्वारा अंततः भारतीय संविधान के निर्माण के लिए एक बुनियादी ढाँचे का प्रारूप स्वीकार किया गया, जिसे ‘संविधान सभा’ का नाम दिया गया।
कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार
- सीटों का आवंटन:
- प्रत्येक प्रांत, देशी रियासतों, और राज्यों के समूह को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें दी जानी थीं।
- सामान्यतः 10 लाख की जनसंख्या पर 1 सीट की व्यवस्था रखी गई।
- कुल सीटें:
- संविधान सभा की कुल 389 सीटों में से ब्रिटिश सरकार के प्रत्यक्ष शासन वाले प्रांतों को 296 सीटें और देशी रियासतों को 93 सीटें आवंटित की जानी थीं।
- ब्रिटिश भारत के प्रांतों में सीटों का विभाजन:
- 296 सीटों में से 292 सदस्यों का चयन ब्रिटिश भारत के गवर्नरों के अधीन 11 प्रांतों से किया गया।
- शेष 4 सीटों का चयन दिल्ली, अजमेर-मारवाड़, कुर्ग, और ब्रिटिश बलूचिस्तान के चीफ़ कमिश्नर प्रांतों (प्रत्येक में से 1-1) से किया गया।
- प्रमुख समुदायों में विभाजन:
- प्रत्येक प्रांत की सीटों को तीन प्रमुख समुदायों – मुसलमान, सिख, और सामान्य (मुस्लिम और सिख के अलावा) – में उनकी जनसंख्या के अनुपात में बाँटा गया।
- चुनाव प्रक्रिया:
- प्रत्येक विधानसभा में प्रत्येक समुदाय के सदस्यों द्वारा अपने प्रतिनिधियों का चुनाव एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से समानुपातिक प्रतिनिधित्व के तरीके से किया गया।
- देशी रियासतों का प्रतिनिधित्व:
- देशी रियासतों के प्रतिनिधियों का चुनाव रियासतों के प्रमुखों द्वारा किया जाना था।
- संविधान सभा का स्वरूप:
- संविधान सभा आंशिक रूप से चुनी हुई और आंशिक रूप से नामांकित निकाय थी।
- चुनाव परिणाम (1946):
- ब्रिटिश भारत के प्रांतों को आवंटित 296 सीटों के लिए जुलाई-अगस्त 1946 में चुनाव हुए।
- परिणाम:
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस: 208 सीटें
- मुस्लिम लीग: 73 सीटें
- अन्य छोटे समूह: 15 सीटें
प्रस्तावना क्या है? (What is Preamble?)
प्रस्तावना भारतीय संविधान की भूमिका की भाँति है, जिसमें संविधान के आदर्शों, उद्देश्यों, सरकार के स्वरूप, संविधान के स्रोत से संबंधित प्रावधान और संविधान के लागू होने की तिथि आदि का संक्षेप में उल्लेख है।
- प्रसिद्ध न्यायविद् व संविधान विशेषज्ञ एन. ए. पालकीवाला ने प्रस्तावना को संविधान के ‘परिचय पत्र’ की संज्ञा दी है।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आविर्भाव पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा 13 दिसंबर 1946 को संविधान सभा में रखे गए ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ से हुआ है। इसी कारण इसे ‘उद्देशिका’ भी कहा जाता है।
- प्रस्तावना, अमेरिकी संविधान (प्रथम लिखित संविधान) से ली गई है, लेकिन इसकी भाषा पर ऑस्ट्रेलियाई संविधान की प्रस्तावना का प्रभाव है।
- 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा प्रस्तावना में ‘समाजवादी,’ ‘पंथनिरपेक्ष,’ और ‘अखंडता’ शब्द शामिल किए गए।
प्रस्तावना (Preamble)
“हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा उसके समस्त नागरिकों को:
- सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय,
- विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
- प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिये,
- तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिये,
दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।“
प्रस्तावना में उल्लिखित शब्द
“हम, भारत के लोग” (“We, the people of India”)
- “हम, भारत के लोग…अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।” का अर्थ है कि यह संविधान भारत के लोगों द्वारा बनाया गया, स्वीकार किया गया, और अपने ऊपर लागू किया गया है।
- भारतीय संविधान भारतीय जनता को समर्पित है।